संत रविदास जयंती 2025

संत रविदास जयंती एक महान संत कवि और समाज सुधारक गुरु रविदास  जयंती  12 फरवरी 2025 को  आयोजित किया जा रहा है। जिसे माघ मास में पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष पूरे भारतवर्ष  में हर्ष उल्लास से मनाया जाता है। संत रविदास के अनुयायी इस दिन मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना करते हैं, तथा जगह-जगह पर इस महान पर्व के अवसर पर मेले का भी आयोजन किया जता है।

संत रविदास जयंती 2025, 12 फरवरी 2025 को मनाई जा रही है। इस अवसर पर सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे क्योंकि 12 फरवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है।

संत रविदास जयंती 2025
समाज में अनेक जातियाँ हैं, जैसे केले के पत्तों में कई परतें होती हैं। जब तक जाति-भेद खत्म नहीं होगा, तब तक लोग सच्चे अर्थों में एक नहीं हो सकते। मैं ऐसा राज्य चाहता हूँ जहाँ सभी को अन्न मिले, जहाँ कोई छोटा-बड़ा न हो और सब प्रेमपूर्वक रहें। यदि मन पवित्र और निर्मल है, तो घर में किया गया कार्य भी उतना ही पवित्र है जितना गंगा स्नान।

संत रविदास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य रोचक जानकारी

महान संत समाज सुधारक, ज्ञान और भक्ति को एक प्रशस्त मार्ग दिखाने वाले संत रविदास का जन्म पंद्रवी शताब्दी में सिर गोवर्धनपुर  वाराणसी में हुआ था वह एक अत्यन्त गरीब और चमड़े का कार्य करने वाले परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उनकी भक्ति, ज्ञान, और समाज सुधार की भावना ने उन्हें एक महान् संत बना दिया। वह जातिवाद, सामाजिक भेदभाव, सामाजिक असमानता का विरोध करते थे। उन्होंने अपनी बात आम जन तक प्रेम भाव से पहुंचाया।

संत जी कहते है कि- भगवान की भक्ति जाति धर्म या किसी कुल में पैदा होने से नहीं मिलती बल्कि सच्ची भक्ति, प्रेम और भगवान के लिए सच्चे मन से आस्था ही भक्ति के लिए सर्वोपरि रास्ता है।

रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व ..

रविदास जयंती मनाने का प्रमुख उद्देश्य यह है, कि संत रविदास (रैदास) के विचार को आम जन तक पहुंचना, लोगों को भक्ति के लिए मार्ग दिखाना तथा उनके दिए उनके द्वारा दिए गए धर्म उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाना है। 

 संत रविदास जयंती के दिन उनके समर्थक विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, सत्संग, गोष्ठी, और भजन कीर्तन का आयोजन करते हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा पंजाब में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है।

संत रविदास जयंती 2025
जो सच बोलता है, समाज उसे मारने दौड़ता है, जबकि झूठ को सब मानते हैं। लेकिन हमें सच्चाई का ही साथ देना चाहिए। यदि मन निर्मल और पवित्र है, तो बाहरी स्नान का कोई विशेष महत्व नहीं, क्योंकि सच्ची पवित्रता मन की होती है।

संत रविदास जाति-पात वाद का विरोध करते थे। वह सभी मनुष्य को एक समान मानते थे। उनका मानना था, की जन्म या किसी कुल में पैदा होने के आधार पर किसी को अपने आप को ऊंचा, नीचा या श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। संत रविदास का मानना था, कि ईश्वर निराकार है, सर्वशक्तिमान है। मन में श्रद्धा और भक्ति से ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। संत रविदास के अपनी वाणी में कहते है, अपने कर्म करने पर भरोसा रखना चाहिए, अपना कर्म और मेहनत ही मनुष्य को सफलता की ओर ले जाता है।

संत रविदास चाहते थे कि एक ऐसे समाज की स्थापना की जाए जहां सभी को एक समान अधिकार और सम्मान मिल सके और कोई किसी से किसी प्रकार का भेद भाव की भावना न रखे और आपस में मिल जुल कर रहें, तभी मनुष्य का विकास संभव है।

संत रविदास जयंती 2025
संत रविदास के दोहे समाज में समानता, प्रेम, भक्ति और सच्चाई की सीख देते हैं।

संत रविदास जयंती के दिन होने वाले प्रमुख आयोजन

संत रविदास जाति-पात वाद का विरोध करते थे। वह सभी मनुष्य को एक समान मानते थे। उनका मानना था, की जन्म या किसी कुल में पैदा होने के आधार पर किसी को अपने आप को ऊंचा, नीचा या श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। संत रविदास का मानना था, कि ईश्वर निराकार है, सर्वशक्तिमान है। मन में श्रद्धा और भक्ति से ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। संत रविदास के अपनी वाणी में कहते है, अपने कर्म करने पर भरोसा रखना चाहिए, अपना कर्म और मेहनत ही मनुष्य को सफलता की ओर ले जाता है।

संत रविदास चाहते थे कि एक ऐसे समाज की स्थापना की जाए जहां सभी को एक समान अधिकार और सम्मान मिल सके और कोई किसी से किसी प्रकार का भेद भाव की भावना न रखे और आपस में मिल जुल कर रहें, तभी मनुष्य का विकास संभव है।

जगह-जगह पर धार्मिक आयोजन शोभायात्राएं ओर प्रसाद वितरण किया जाता है। संत रविदास द्वारा दिए गए वचनों, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ अनुयाइयों द्वारा किया जता है। कुछ भक्त इस दिन गंगा स्नान को भी पवित्र मानते हैं।

संत रविदास जयंती 2025

संत रविदास के अनुयाई और उनके प्रभाव

गुरुनानक, और संत कबीर दास, संत रविदास के विचारों से काफ़ी प्रभावित थे। मीराबाई तो संत रविदास को अपना गुरू भी मानती थीं।

संत रविदास जयंती केवल एक त्योहार की तरह ही नहीं मनाया जाता, बल्कि उनके विचार सामाजिक एकता और सद्भावना से प्रेरित हैं।   

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